महामारी,साहित्य एवं समाज

साहित्य और समाज मानव जीवन के ऐसे दो कड़ी हैं जो हर स्थिति और परिस्थिति में मानव मूल्यों की रक्षा करने, जनकल्याण कार्यों को दिशा देने,विश्व को सही राह दिखाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।ये अभी से नहीं सदियों से चला आ रहा है। जब जब मानव मूल्यों में गिरावट, सृष्टि के जीवों में संकट और नकारात्मक विचारों वाले लोग हावी होने के प्रयास किये,या स्वार्थी लोगों के कुत्सित प्रयास हुए हैं, साहित्य और समाज उठ खड़ा हुआ है।अपने जिम्मेदारियों का इन दोनों कड़ियों ने पूरी ईमानदारी से निर्वहन किया है।साहित्य ने जहाँ राह दिखाई है,वहीं समाज ने अपने सभी कर्तव्यों को पूरा करने में तन, मन और धन लगा दिए। संकट कितना भी भयानक हो,राह कितना भी कठिन हो,अंधेरा कितना भी गहरा हो। समाज और साहित्य ने पूरी दुनिया और सम्पूर्ण चराचर जगत को उबारा है।

महामारी नाम से ही भय लगता है। ऊपर से पूर्व के महामारियों का घिनौना इतिहास हमें कंपित कर देता है। पहले भी महामारी दुनिया के अलग अलग हिस्सों में भिन्न भिन्न समयों पर फैलते रही है। हैजा,चेचक,इन्फ्लूएंजा आदि। लेकिन इसका फैलाव सीमित क्षेत्रों में होने से इन पर काबू पाया जा सका।ऐसा नहीं है कि इससे जनधन की व्यापक हानि नहीं हुई। लाखों लोग इन महामारियों के चपेट में आकर प्राण गंवाये हैं। लेकिन कभी भी ये महामारी एक साथ पूरे विश्व में नहीं फैली जिससे इसको रोकने या फैलाव को आगे बढ़ने से रोकने में जल्दी सफलता मिल गई। एक देश में ये महामारी फैली तो बाकी के अन्य देशों ने इसके नियंत्रण के लिए टीके का ईजाद कर लिए,जो सम्पूर्ण मानवता को बचाने में कारगर साबित हुआ।

Covid-19 कोरोना वायरस द्वारा चीन से फैली इस महामारी ने देखते ही देखते सम्पूर्ण विश्व को अपनी चपेट में ले लिया। शुरू के 2-3 महीनों तक लोगों को इसके लक्षण, कारण,फैलने के तरीके,उपचार आदि को जानने समझने में लग गये। जब तक इसको जाना,समझा गया तब तक ये करोना वाइरस पूरी दुनिया के लाखों लोगों को मौत की नींद सुला गया,या फिर जीवित लोगों में अज्ञात भय का सिहरन पैदा कर गया। आज समूचा विश्व इस अघोषित और घातक बीमारी से पीड़ित है। अपने आप को विश्व का सबसे उन्नत राष्ट्र कहने वाले अमेरिका,इटली,चीन,स्पेन,फ्रांस,इजरायल,रूस आदि देशों में इस महामारी ने स्वास्थ्य सुविधाओं की धज्जी उड़ा दी है। लगभग हर देश चाहे वह छोटा हो या बड़ा, इस महामारी से बचने के तरीके खोजने में जी जान से जुटे हैं।

सन 2020 में इस महामारी कोरोना ने नये नये शब्दावली गढ़ दिए। जैसे- कोरोना वारियर्स,लॉक डाउन,क़वारेंटाइन, रेड,येलो,ग्रीन,कंटेन्मेंट जोन,पी पी ई किट,सोशल डिस्टेंसिंग आदि आदि। भारत में जैसे ही इस समस्या की शुरुआत हुई।देश के प्रधानमंत्री माननीय नरेन्द्र मोदी जी के द्वारा पूरे देश में समूर्ण लॉकडाउन कर सोशल डिस्टेंसिंग के पालन करने के निर्देश दे दिए। इन्ही उपायों के चलते प्रारंभिक पचास दिनों में हमारे देश में इस महामारी के फैलाव को रोकने में आशातीत सफलता मिली। लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग से भारत जैसे विकासशील देश को, जहां की स्वास्थ्य सुविधा अपेक्षाकृत कमजोर हो,वहां अपनी स्वास्थ्य सुविधा बढ़ाने का अवसर और पर्याप्त अवसर मिल गया। लेकिन इसी के साथ ही एक नई चुनौती सुरसा के मुँह जैसे फैलकर हम सबके सामने आ गई। मानव और मानवता को जिंदा रखने की अबूझ पहेली मजदूरों के पलायन के रूप में देखने को मिली।

इसी से शुरू होता है साहित्य और समाज का दायित्व। साहित्य को तो जैसे इस महामारी ने एक नई ऊर्जा दे दी। आज के इस डिजिटल युग में जितनी तेजी से इस बीमारी की जानकारी फैली उतने ही प्रचंड वेग से साहित्यकारों के कलम ने इसके बारे में लिखना शुरू कर दिया। कविता,कहानी,संस्मरण,चुटकुलें,लेख,लघु कथा,गीत,भजन आदि आदि के माध्यम से साहित्यकारों ने लोगों को बांधकर रखा,व्यस्त रखा,नकारात्मक विचारों से बचाये रखा।पल पल की जानकारी देने के लिए डिजिटल क्रांति के इस दौर में अनेक प्लेटफार्म मौजूद है जिसका भरपूर उपयोग साहित्य जगत ने किया। पैदल चलते मजदूर,भूखे प्यासे, पाँव में पड़ गये छाले,खाने को भोजन नहीं,रहने को घर नहीं,सोने को बिस्तर नहीं,जाने को यातायात के साधन नहीं,जेब में फूटी कौड़ी नहीं। मानव की इस अंतहीन व्यथा को साहित्य ने ही अपनी लेखनी से समाज तक पहुँचाया है। समाचार पत्र,टीवी, मोबाइल आदि के माध्यम से मजदूरों के साथ साथ पूरे देश वासियों के विचार,उसकी समस्या, उत्पन्न तकलीफ और पीड़ा या फिर घरों में कैद लोगों  की दिनचर्या,परिवार के साथ रहने की खुशी या विवशता को साहित्य ने बड़ी ही चतुराई और खूबसूरती से समाज तक पहुंचाया है। सम्पूर्ण लॉकडाउन के चलते विश्व पर्यावरण में होने वाले सुखद परिणामों को बताकर लोगों में,समाज में एक नई आशा का संचार प्रवाहित करने का काम साहित्य ने किया है।

आखिर में आता है समाज का चुनौतीपूर्ण दायित्व और जिम्मेदारी। इस मामले में समाज ने हर क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज कराकर मानवता को बचाये और बनाये रखने में अपनी महती भूमिका अदा की है। पैदल चलते जनसमूह के रेले को मुफ्त में भोजन,पानी देकर उसके निराशा भरी जीवन में उम्मीद की किरण को बनाये रखने में समाज ने अपना सब कुछ झोंक दिया। प्रधानमंत्री केयर्स फण्ड हो या मुख्यमंत्री सहायता कोष समाज के हर वर्ग और हर तबके ने अपनी क्षमता के अनुसार सहयोग देकर इस महामारी से लड़ने में सरकार का भरपूर साथ दिए हैं। अनेकों संस्थाओं,समूहों ने मुफ्त में भोजन पानी की व्यवस्था,मास्क की उपलब्धता सुनिश्चित किये, अपने निजी भवन,होस्टल,अस्पताल,लॉज,आदि को मानव सेवा के लिए निःशुल्क खोल दिए। कोरोना वारियर्स की सेवा करने,उनके मनोबल को बढ़ाये रखने के लिए लोगों ने प्रधानमंत्री की अपील पर ताली, थाली बजाकर या करोडों दीप जलाकर अपनी सकारात्मक ऊर्जा प्रदान किये।

वास्तव में साहित्य और समाज जिस देश में भी जीवित अवस्था में है उस देश को कोई भी आपदा हरा नहीं सकती। इन दोनों स्तंभों के प्रकाश से अंधेरा अधिक दिनों तक टिक नहीं सकता। ऐसे देश के निवासियों में नकारात्मक विचार और भाव जन्म नहीं ले सकते,जहां साहित्य और समाज दृढ़ता से खड़े होकर वसुधैव कुटुम्बकम के लिए संकल्पित हों। साहित्य और समाज की सक्रिय जुगलबंदी महामारी को परास्त करने में निश्चित रूप से सफल होगी।

रामेश्वर प्रसाद गुप्ता

15, ओमकार होम्स

राजकिशोरनगर,बिलासपुर

छत्तीसगढ़

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